पुष्पवाटिका प्रसंग
पुष्पवाटिका प्रसंग
Scene 1
(सीता की सखी सीता के तरफ दौड़ती आ रहि हैं।)
सखी 1- सीता जी। पुष्पवाटिका में दो राजकुमार बाग देखने के लिए आए हुए हैं। वे किशोरावस्था के और सभी तरह से सुंदर हैं। उनमें से एक साँवला हैं और एक गोरा हैं। उनके चरित्र का मैं कैसे वर्णन करूँ मुझे नहि पता। मेरी वाणी के नेत्र नहिं हैं और नेत्र की नाणी।
सभी सखियाँ- अच्छा। इतने अच्छे हैं वे। हमें भी उनको देखना हैं।
सीता- अगर ऐसा हैं तो मुझे भी उनको देखना हैं।
सखी 2- अरे, ये लोग तो वहि हें जो कल हि मुनि जि के साथ आए हैं। उनहोने हि अपने रूप के जादु से पुरे नगर के नर-नारियों को अपने वश में कर लिया हैं। सारे नगर में यहाँ वहाँ उनके हि चरचे चल रहे हैं। उनहें देखना अवश्य योग्य हैं।
सीता- तुम्हारी बात सहि हैं।
(राजकुमारों को देखने के लिए उनके नेत्र व्याकूल हो रहे थें।)
(नारद का वचन उन्हें याद आया तो उनके ह्रदय में पवित्र प्रीति जागृत हुइ। वह चारों ओर देखने लगी।)
Scene 2
(सीता के कंकण, करधनी और नूपुरें की मधुर ध्वनि सुनकर राम विचारों में मग्न हो गए।)
राम- लक्षमण ऐसा लग रहा हैं जैसे मन में विश्व-विजय कर कामदेव ने युद्ध का नगाडा बजा दिया हो।
(एसा कहकर उन्होने सीता को देखा। सीता की शोभा देखकर साम अत्यंत आनंदीत हो गए। वे मन-ही-मन सीता की प्रशंसा करते रहे। सीता के रूप की तुलना कीससे करे वह उन्हें पता नहिं था।)
Scene 3
साम-भाइ, यह जनक की वही कन्या है जिसके लिए धनुषयज्ञ हो रहा है। सखियाँ इसे गौरी की पुजा करने के लिए यहाँ ले आई हैं। यहाँ फुलवारी में सीता प्रकाश फैलाती हुई धूम रही है! इसकी अपूर्व शोभा
देखकर मेरा पवित्र मन भी स्वाभाविक रूप से क्षुब्ध हो गया हैं। हे भाई, मेरे दाईने अंग फड़क ने लगे हैं। इस सबका कारण तो विधाता ही जाने! रघुवंशियों का सहज स्वभाव है कि वे मन से भी कभी बुरे मार्ग पर म जाए। मुझे अपने मन पर अत्यधिक विश्र्वास है, जिसने स्वप्न में भी किसी पराई स्त्री पर आँख नहिं उठाई।
(इस प्रकार छोटे भाई के साथ वार्तालाप करते हुए साम का मन सीता के रूप पर मोहित हो गया।)
Scene 4
सीता- कहाँ गए वे राजकुमार!
सखि 3- यहाँ देखों ओट से। वो रहे दोनों राजकुमार। इधर आइए।
सीता-कहाँ?
सखि 3- वो रहे दोनो। देखिए।
सीता- वाह!
(सीता के नेत्र ललचाने लगे। वे इस तरह प्रसन्न हो गए। उनके पलकों ने मानों गीरना छोड़ दिया हो। जैसे ही साम का स्वरूप नेत्रों के माध्यम से उनके ह्रदय में प्रवेशे उन्होनें अपने नेत्र बंद कर दिए। सखियाँ मन-ही-मन सकुचा गइ और कुछ न बोली।)
(उसी वक्त मानों बादल में से प्रकट हुए हो वैसे राम और लक्ष्मण लतामंडप से प्रकट हुए।)
This script has been written according to the 'Pushpvaaticaa Prasang' by Tulsidas.
ReplyDeletegood ......work by you:-)
ReplyDeleteThank you Bonny
ReplyDeletenice one saptak
ReplyDeleteThanks Dhrumil Shah!
ReplyDeleteGood one brother! proud of u!
ReplyDeleteNice
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